विश्वास Poetry

मैं ने अपना वजूद गठड़ी में बाँध लिया

जवाज़ जाफ़री

सूरज की पहली किरन

अमजद इस्लाम अमजद

कल से आज तक

दौर आफ़रीदी

बहार बन के जब से वो मिरे जहाँ पे छाए हैं

बड़े सलीक़े से तोड़ा मिरा यक़ीन उस ने

ज़िया ज़मीर

हम

ज़िया जालंधरी

गुमाँ था या तिरी ख़ुश्बू यक़ीन अब भी नहीं

ज़िया जालंधरी

कहानी

ज़ीशान साहिल

कैसी ज़मीं सुकून कहाँ का कहाँ की छाँव

ज़िशान इलाही

ख़ाक-ज़ादे ख़ाक में या ख़ाक पर हैं आज भी

ज़मीर अतरौलवी

जानती हूँ कि वो ख़फ़ा भी नहीं

ज़ाहीदा हिना

गुमान तक में न था महव-ए-यास कर देगा

ज़फ़र कलीम

तिरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था

ज़फ़र गौरी

तिरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था

ज़फ़र गौरी

उसी यक़ीन उसी दस्त-ओ-पा की हाजत है

यूसुफ़ तक़ी

यही बज़्म-ए-ऐश होगी यही दौर-ए-जाम होगा

वसीम बरेलवी

ये मानता हूँ कि सौ बार झूट कहता है

वक़ार ख़ान

हुज़ूर-ए-यार भी आज़ुर्दगी नहीं जाती

वामिक़ जौनपुरी

बर्क़ सर-ए-शाख़-सार देखिए कब तक रहे

वामिक़ जौनपुरी

सुनो ये ग़म की सियह रात जाने वाली है

वाली आसी

छतरी लगा के घर से निकलने लगे हैं हम

वाली आसी

लगाएँ आग ही दिल में कि कुछ उजाला हो

वजद चुगताई

अदम कथा

तनवीर अंजुम

तरीक़ कोई न आया मुझे ज़माने का

तनवीर अंजुम

अजब यक़ीन सा उस शख़्स के गुमान में था

ताबिश कमाल

अजब यक़ीन सा उस शख़्स के गुमान में था

ताबिश कमाल

हर लम्हा ज़िंदगी के पसीने से तंग हूँ

सूर्यभानु गुप्त

अपनी ज़मीं से दूर ज़मान-ओ-मकाँ से दूर

सुलतान फ़ारूक़ी

तन्हाइयों की बर्फ़ थी बिस्तर पे जा-ब-जा

सुल्तान अख़्तर

तुझे क्या हुआ है बता ऐ दिल न सुकून है न क़रार है

सुलैमान अहमद मानी

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