तिरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था
मैं ज़िंदगी के बड़े सख़्त इम्तिहान में था
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बे-चराग़ाँ बस्तियों को ज़िंदगी दे
जारी है कब से मा'रका ये जिस्म-ओ-जाँ में सर्द सा
शब के तारीक समुंदर से गुज़र आया हूँ
चल पड़े हम दश्त-ए-बे-साया भी जंगल हो गया
लोग समझे अपनी सच्चाई की ख़ातिर जान दी
टूटे तख़्ते पर समुंदर पार करने आए थे
शो'ले से चटकते हैं हर साँस में ख़ुशबू के
ख़्वाब रंगों से बनी है याद ताज़ा
सात रंगों से बनी है याद ताज़ा
उभरते डूबते तारों के भेद खोलेगा
दिल में रख ज़ख़्म-ए-नवा राह में काम आएगा