ज़फ़र गौरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़फ़र गौरी

ज़फ़र गौरी  कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़फ़र गौरी
नामज़फ़र गौरी
अंग्रेज़ी नामZafar Ghauri

तिरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था

लोग समझे अपनी सच्चाई की ख़ातिर जान दी

दिल में रख ज़ख़्म-ए-नवा राह में काम आएगा

बे-चराग़ाँ बस्तियों को ज़िंदगी दे

उभरते डूबते तारों के भेद खोलेगा

टूटे तख़्ते पर समुंदर पार करने आए थे

तिरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था

शो'ले से चटकते हैं हर साँस में ख़ुशबू के

शब के तारीक समुंदर से गुज़र आया हूँ

सात रंगों से बनी है याद ताज़ा

ख़्वाब रंगों से बनी है याद ताज़ा

जारी है कब से मा'रका ये जिस्म-ओ-जाँ में सर्द सा

फ़स्ल-ए-गुल को ज़िद है ज़ख़्म दिल का हरा कैसे हो

दिल में रख ज़ख़्म-ए-नवा राह में काम आएगा

चल पड़े हम दश्त-ए-बे-साया भी जंगल हो गया

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