आग Poetry

पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था

फ़रह शाहिद

चले ही जाएगी क्या दर्द की कटारी भला

अनवर अंजुम

शाइ'र की इल्तिजा

फ़ज़लुर्रहमान

हम उस से इश्क़ का इज़हार कर के देखते हैं

अख़्तर हाशमी

प्यार का यूँ दस्तूर निभाना पड़ता है

वलीउल्लाह वली

इश्क़ को आँख में जलते देखा

नजमा शाहीन खोसा

कहानी ओढ़ ली मैं ने

फ़ाख़िरा बतूल

गाँधी के बा'द

इज़हार मलीहाबादी

सुकून

हरबंस मुखिया

सियासी मस्लहत

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

यौम-ए-बर्क़

बिर्ज लाल रअना

जवाँ आग

हबीब जालिब

तख़्लीक़

फ़ैसल हाश्मी

दिसम्बर की आवाज़

बलराज कोमल

जिस्म से आगे की मंज़िल

फ़ैसल हाश्मी

तू ने वो सोज़ दिया है कि इलाही तौबा

मिरी ख़ाक में विला का न कोई शरार होता

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

शुक्र किया है इन पेड़ों ने सब्र की आदत डाली है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है

ज़ुबैर रिज़वी

कोई चेहरा न सदा कोई न पैकर होगा

ज़ुबैर रिज़वी

कई कोठे चढ़ेगा वो कई ज़ीनों से उतरेगा

ज़ुबैर रिज़वी

न थीं तो दूर कहीं ध्यान में पड़ी हुई थीं

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

दिनों में दिन थे शबों में शबें पड़ी हुई थीं

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

अबुल-हौल

ज़िया जालंधरी

आज ही महफ़िल सर्द पड़ी है आज ही दर्द फ़रावाँ है

ज़िया जालंधरी

ये ख़ाल-ओ-ख़द मिरे अपने

ज़ेहरा निगाह

शायर

ज़ीशान साहिल

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