आग Poetry (page 21)

खोने की बात और न पाने की बात है

रईस सिद्दीक़ी

जंगल से आगे निकल गया

रईस फ़रोग़

हवस का रंग ज़ियादा नहीं तमन्ना में

रईस फ़रोग़

हाथ हमारे सब से ऊँचे हाथों ही से गिला भी है

रईस फ़रोग़

घर में सहरा है तो सहरा को ख़फ़ा कर देखो

रईस फ़रोग़

देर तक मैं तुझे देखता भी रहा

रईस फ़रोग़

आँखों के कश्कोल शिकस्ता हो जाएँगे शाम को

रईस फ़रोग़

आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना

रईस फ़रोग़

दिल उन की याद से जो बहलता चला गया

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

दिल की खेती सूख रही है कैसी ये बरसात हुई

राही मासूम रज़ा

रंग हवा से छूट रहा है मौसम-ए-कैफ़-ओ-मस्ती है

राही मासूम रज़ा

मता-ओ-माल-ए-हवस हुब्ब-ए-आल सामने है

राही फ़िदाई

एक इक लम्हा कि एक एक सदी हो जैसे

इक़बाल उमर

छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही

इक़बाल उमर

उफ़ क्या मज़ा मिला सितम-ए-रोज़गार में

इक़बाल सुहैल

इन्दर थी जितनी आग वो ठंडी न हो सकी

इक़बाल साजिद

ग़ुर्बत की तेज़ आग पे अक्सर पकाई भूक

इक़बाल साजिद

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

इक़बाल साजिद

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

प्यासे के पास रात समुंदर पड़ा हुआ

इक़बाल साजिद

हर घड़ी का साथ दुख देता है जान-ए-मन मुझे

इक़बाल साजिद

दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया

इक़बाल साजिद

गुज़र गई जो चमन पर वो कोई क्या जाने

इक़बाल सफ़ी पूरी

कितने ही लोग दिल तलक आ कर गुज़र गए

इक़बाल मतीन

बुझ गई दिल की किरन आईना-ए-जाँ टूटा

इक़बाल हैदर

जब घर की आग बुझी तो कुछ सामान बचा था जलने से

इक़बाल अज़ीम

हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते

इक़बाल अज़ीम

बर्ग ठहरे न जब समर ठहरे

इक़बाल अासिफ़

ज़मीं से उट्ठी है या चर्ख़ पर से उतरी है

इंशा अल्लाह ख़ान

गर्मी ने कुछ आग और भी सीने में लगाई

इंशा अल्लाह ख़ान

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