दिल की खेती सूख रही है कैसी ये बरसात हुई
ख़्वाबों के बादल आते हैं लेकिन आग बरसती है
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इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई
तश्बीब
तआरुफ़
एक मंज़र
तल्ख़-ओ-तुर्श
मौज-ए-हवा की ज़ंजीरें पहनेंगे धूम मचाएँगे
जूही का पौदा
चाँद की बुढिया
लोग यक-रंगी-ए-वहशत से भी उकताए हैं
जितने वहशी हैं चले जाते हैं सहरा की तरफ़
ज़िंदगी ढूँढ ले तू भी किसी दीवाने को
एक नज़्म सुब्ह के इंतिज़ार में