ज़िंदगी ढूँढ ले तू भी किसी दीवाने को
उस के गेसू तो मिरे प्यार ने सुलझाए हैं
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तल्ख़-ओ-तुर्श
दिलों की राह पर आख़िर ग़ुबार सा क्यूँ है
चाँद और चकोर
जिन से हम छूट गए अब वो जहाँ कैसे हैं
जूही का पौदा
ख़्वाब
चोर
एक मंज़र
दर्द तन्हाई का
दिल की खेती सूख रही है कैसी ये बरसात हुई
रंग हवा से छूट रहा है मौसम-ए-कैफ़-ओ-मस्ती है