मन Poetry

श्री गुरु-नानक

शातिर अमृतसरी

सुल्तान अख़्तर पटना के नाम

रज़ा नक़वी वाही

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

कोई चराग़ न जुगनू सफ़र में रक्खा गया

वफ़ा नक़वी

जब जब मैं ज़िंदगी की परेशानियों में था

इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ

अर्श सिद्दीक़ी

जब जब मैं ज़िंदगी की परेशानियों में था

चारों तरफ़ हैं ख़ार-ओ-ख़स दश्त में घर है बाग़ सा

ज़ुबैर शिफ़ाई

सुकूत-ए-शब में दिल-ए-दाग़-दाग़ रौशन है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

जागे ज़मीर ज़ेहन खुले ताज़गी मिले

याक़ूब राही

यार है आइना है शाना है

यगाना चंगेज़ी

दिल-ए-पुर दाग़ बाग़ किस का है

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज

वज़ीर अली सबा लखनवी

दाग़-ए-जुनूँ दिमाग़-ए-परेशाँ में रह गया

वज़ीर अली सबा लखनवी

नज़्अ' में प्यार से क्यूँ पूछते हो तुम मुझ को

वसीम ख़ैराबादी

ज़ियादा सोचने वाले तुझे पता नहीं है

वक़ार ख़ान

नए गुल खिले नए दिल बने नए नक़्श कितने उभर गए

वामिक़ जौनपुरी

हालात से फ़रार की क्या जुस्तुजू करें

वामिक़ जौनपुरी

बुलाए जाते हैं मक़्तल में हम सज़ा के लिए

वामिक़ जौनपुरी

राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस

वलीउल्लाह मुहिब

जावे थी जासूसी-ए-मजनूँ को ता राहत न ले

वली उज़लत

कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग

वली उज़लत

जब सनम कूँ ख़याल-ए-बाग़ हुआ

वली मोहम्मद वली

कौन ये रौशनी को समझाए

वजद चुगताई

मेरा साक़ी

उरूज क़ादरी

बुझे तो दिल भी थे पर अब दिमाग़ बुझने लगे

तारिक़ बट

ग़मों की धूप में बरगद की छाँव जैसी है

तनवीर सिप्रा

मुझ को दिमाग़-ए-गर्मी-ए-बाज़ार है कहाँ

तालिब चकवाली

बेज़ार ज़िंदगी से दिल-ए-मुज़्महिल नहीं

तालिब चकवाली

एक एक क़तरा उस का शो'ला-फ़िशाँ सा है

तख़्त सिंह

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