मन Poetry (page 6)

यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का

ग़ालिब

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ

ग़ालिब

तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है

ग़ालिब

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

ग़ालिब

रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़

ग़ालिब

फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब

ग़ालिब

पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द

ग़ालिब

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले

ग़ालिब

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

ग़ालिब

जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार

ग़ालिब

जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है

ग़ालिब

हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो

ग़ालिब

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़

ग़ालिब

गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का

ग़ालिब

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

सई-ए-ग़ैर-हासिल को मुद्दआ नहीं मिलता

फ़िगार उन्नावी

रूह और बदन दोनों दाग़ दाग़ हैं यारो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मैं ख़ुद हूँ नक़्द मगर सौ उधार सर पर है

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ख़ुशी से फूलें न अहल-ए-सहरा अभी कहाँ से बहार आई

फ़ारूक़ बाँसपारी

जो बैठो सोचने हर ज़ख़्म-ए-दिल कसकता है

फ़ारूक़ अंजुम

कुछ तो वुफ़ूर-ए-शौक़ में बाइ'स-ए-इम्तियाज़ हो

फ़रहत कानपुरी

काबा-ए-दिल दिमाग़ का फिर से ग़ुलाम हो गया

फ़रहत एहसास

बा-मा'नियों से बच के मोहमल की राह पकड़ी

फ़रहत एहसास

अब उस मक़ाम पे है मौसमों का सर्द मिज़ाज

फ़रहान सालिम

ये क्या हुआ कि सभी अब तो दाग़ जलने लगे

फ़रहान सालिम

मिरे चराग़ो मिरा गंज-ए-बे-कराँ ले लो

फ़रहान सालिम

दिल में शगुफ़्ता गुल भी हैं रौशन चराग़ भी

फ़रीद इशरती

ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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