मन Poetry (page 7)

मिरे हमदम मिरे दोस्त!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मौज़ू-ए-सुख़न

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

लहू का सुराग़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दिल में अब यूँ तिरे भूले हुए ग़म आते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रख़्त-ए-सफ़र है इस में क़रीना भी चाहिए

फ़ैसल अजमी

नतीजा एक सा निकला दिमाग़ और दिल का

एजाज़ गुल

मश्क़-ए-सुख़न में दिल भी हमेशा से है शरीक

एजाज़ गुल

ये घूमता हुआ आईना अपना ठहरा के

एजाज़ गुल

ख़ाशाक से ख़िज़ाँ में रहा नाम बाग़ का

एजाज़ गुल

'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो

दिलावर फ़िगार

क्रिकेट और मुशाइरा

दिलावर फ़िगार

मशवरा

दाऊद ग़ाज़ी

साक़ी मुझे शबाब का रसिया कहे सो हूँ

दानिश नज़ीर दानी

दिल चुरा कर नज़र चुराई है

दाग़ देहलवी

दोनों की आरज़ू में चमक बरक़रार है

चित्रांश खरे

मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले

चकबस्त ब्रिज नारायण

उन को दिमाग़-ए-पुर्सिश-ए-अहल-ए-मेहन कहाँ

बेखुद बदायुनी

हम मय-कदे से मर के भी बाहर न जाएँगे

बेदम शाह वारसी

नक़्श बर-दीवार

बेबाक भोजपुरी

जो ज़मीं पर फ़राग़ रखते हैं

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

ज़ेर-ए-ज़मीं हूँ तिश्ना-ए-दीदार-ए-यार का

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है

बहराम जी

ये दिमाग़

अज़रा अब्बास

एक नज़्म लिखना आसान है

अज़रा अब्बास

तसमा-ए-पा

अज़ीज़ तमन्नाई

'मीर'

अज़ीज़ लखनवी

जीते हैं कैसे ऐसी मिसालों को देखिए

अज़ीज़ लखनवी

तमाम शख़्सियत उस की हसीं नज़र आई

अज़हर इनायती

कर्ब-ए-हिज्राँ ज़ि-बस है क्या कीजे

अज़ीम कुरेशी

किसे दिमाग़ कि उलझे तिलिस्म-ए-ज़ात के साथ

अताउर्रहमान क़ाज़ी

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