क्रिकेट और मुशाइरा

मुशाइरे का भी तफ़रीह एम होता है

मुशाइरे में भी क्रिकेट का गेम होता है

वहाँ जो लोग खिलाड़ी हैं वो यहाँ शायर

यहाँ जो सद्र-नशीं है वहाँ है एम्पायर

वहाँ पे शर्त कि हो ज़ोर-ए-बाज़ू-ए-महमूद

यहाँ ये क़ैद कि हो लहन-ए-हज़रत-ए-दाऊद

वहाँ तमद्दुन-ए-मश्रिक की मौत का ग़म है

यहाँ अदब के जनाज़ा पे शोर-ए-मातम है

वहाँ रियाज़-ए-मुसलसल से काम चलता है

यहाँ गले के सहारे कलाम चलता है

वहाँ भी खेल में नो-बॉल हो तो फ़ाउल है

यहाँ भी शेर में इहमाल हो तो फ़ाउल है

वहाँ है एल-बी-डब्लि़ऊ यहाँ ये चक्कर है

कि अंदलीब मोअन्नस है या मुज़क्कर है

वहाँ भी सिर्फ़ मुक़द्दर का खेल होता है

जो अन-लकी है यहाँ भी वो फ़ेल होता है

वहाँ है एक ही कप्तान पूरी टीम की जान

यहाँ हर एक प्लेयर बजाए ख़ुद कप्तान

यहाँ कुछ ऐसे भी कप्तान पाए जाते हैं

जो रन बनाते नहीं हिट लगाए जाते हैं

वहाँ जो लोग अनाड़ी हैं वक़्त काटते हैं

यहाँ भी कुछ मुतशायर दिमाग़ चाटते हैं

हुआ करे अगर स्कोर उस का ज़ीरो है

यहाँ जो शख़्स फिसड्डी है वो भी हीरो है

निगाह जिन की पहुंचती है हश्व ओ ईता पर

बना दिया है यहाँ उन को बैक स्टॉपर

अदब-नवाज़ पे शाउट यहाँ भी होते हैं

ये बद-नसीब रन-आउट यहाँ भी होते हैं

'हनीफ़' भी कोई बोगस क्रिकेटर तो नहीं

मगर 'असर' से ज़ियादा फ़्री-हिटर तो नहीं

बजा है 'फ़ज़्ल' के सिक्सर पे मर्हबा कहना

मगर 'फ़िराक़' की बाउंड्री का क्या कहना

मिरे ख़याल को अहल-ए-नज़र करेंगे कैच

मुशाइरा भी है इक तरह का क्रिकेट मैच

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