तमाम शख़्सियत उस की हसीं नज़र आई
तमाम शख़्सियत उस की हसीं नज़र आई
जब उस के क़त्ल की अख़बार में ख़बर आई
शरीफ़ लोग चढ़े जब नहीं हैं कोठों पर
तो किस के साथ ये तहज़ीब बाम पर आई
गुज़र के मुझ को ख़द-ओ-ख़ाल के सराबों से
तमाम शहर में बे-चेहरगी नज़र आई
ख़मोश क्या हुई बुढ़िया सफ़ेद बालों की
कहानियों की कोई रात फिर न घर आई
अजीब शख़्स था कुछ देर गुफ़्तुगू जो हुई
दिल ओ दिमाग़ में इक रौशनी उतर आई
दुआएँ माँग रहे थे हवा की लोग मगर
हवा चली भी तो आँखों में धूल भर आई
गुलाब टूट के बिखरा था कल जहाँ 'अज़हर'
उसी मक़ाम पे ख़ुश्बू मुझे नज़र आई
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