मेरी ख़ामोशी पे थे जो तअना-ज़न
शोर में अपने ही बहरे हो गए
Mohsin Naqvi
Gulzar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(882) Peoples Rate This
अजब जुनून है ये इंतिक़ाम का जज़्बा
किसी के ऐब छुपाना सवाब है लेकिन
वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना
जाने आया था क्यूँ मकान से मैं
चौराहों का तो हुस्न बढ़ा शहर के मगर
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
ये क्या कि रंग हाथों से अपने छुड़ाएँ हम
घर तो हमारा शो'लों के नर्ग़े में आ गया
बनाए ज़ेहन परिंदों की ये क़तार मिरा
जहाँ ज़िदें किया करता था बचपना मेरा
उन के भी अपने ख़्वाब थे अपनी ज़रूरतें