संभव Poetry

हिज्र

अज़ीमुद्दीन अहमद

कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया

अनवर अंजुम

ज़ब्त की हद से भी जिस वक़्त गुज़र जाता है

शौक़ मुरादाबादी

चाँदनी-रात में बुलाऊँ तुझे

बीना गोइंदी

ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी

आमिर अमीर

चौकीदार

बुशरा सईद

महा-भारत

ग़ज़नफ़र

अगर औरत कमा सकती तो

बुशरा सईद

इम्कान

फ़ैसल हाश्मी

फिर ये मुमकिन ही नहीं है कि सँभालो मुझ को

घटाएँ छाई हैं साग़र उठा ले जिस का जी चाहे

बे-मुरव्वत हैं तो वापस ही उठा ले शब-ओ-रोज़

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

यूँ जो पलकों को मिला कर नहीं देखा जाता

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

ऐसे उस हाथ से गिरे हम लोग

ज़िया मज़कूर

ख़ुद-कलामी ख़ातून-ए-ख़ाना की

ज़ेहरा अलवी

मिरे दिल के टूटे सितारे को तुम ने

ज़ीशान साहिल

हवा

ज़ीशान साहिल

ये इश्क़ इक इम्तिहान तो ले मैं पास कर लूँ

ज़ीशान साजिद

उस पे करना मिरे नालों ने असर छोड़ दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

नियाज़-ओ-नाज़ के साग़र खनक जाएँ तो अच्छा है

ज़ेब बरैलवी

किसी की याद-ए-रंगीं में है ये दिल बे-क़रार अब तक

ज़हीर अहमद ताज

चमन में सैर-ए-गुल को जब कभी वो मह-जबीं निकले

ज़ाहिद चौधरी

सूखे हुए पत्तों में आवाज़ की ख़ुशबू है

ज़हीर सिद्दीक़ी

दर्द तो ज़ख़्म की पट्टी के हटाने से उठा

ज़हीर सिद्दीक़ी

इक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए

ज़फर ज़ैदी

जो पढ़ा है उसे जीना ही नहीं है मुमकिन

ज़फ़र सहबाई

शब के ग़म दिन के अज़ाबों से अलग रखता हूँ

ज़फ़र सहबाई

हरे पत्तो सुनहरी धूप की क़ुर्बत में ख़ुश रहना

ज़फ़र सहबाई

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