संभव Poetry (page 8)

दिल-लगी ग़ैरों से बे-जा है मिरी जाँ छोड़ दे

रिन्द लखनवी

अदू ग़ैर ने तुझ को दिलबर बनाया

रिन्द लखनवी

छुपे हुए थे जो नक़्द-ए-शुऊ'र के डर से

रियाज़ मजीद

दिल को रह रह के ये अंदेशे डराने लग जाएँ

रेहाना रूही

आँसू अपनी चश्म-ए-तर से निकलें तो

राज़िक़ अंसारी

इसी बिखरे हुए लहजे पे गुज़ारे जाओ

रउफ़ रज़ा

अब इस से पहले कि तन मन लहू लहू हो जाए

रऊफ़ ख़ैर

हाथ से छू कर ये नीला आसमाँ भी देखते

राशिद मुफ़्ती

तेरी मेहंदी में मिरे ख़ूँ की महक आ जाए

राशिद अमीन

सुर्ख़ हो जाता है मुँह मेरी नज़र के बोझ से

रशीद लखनवी

दिला मा'शूक़ जो होता है वो सफ़्फ़ाक होता है

रशीद लखनवी

आप दिल जा कर जो ज़ख़्मी हो तो मिज़्गाँ क्या करे

रशीद लखनवी

सब की आँखें तो खुली हैं देखता कोई नहीं

राणा गन्नौरी

तू कोई ख़्वाब नहीं जिस से किनारा कर लें

राना आमिर लियाक़त

ग़म छुपाने में वक़्त लगता है

रमेश कँवल

मोहब्बत हासिल-ए-दुनिया-ओ-दीं है

राम कृष्ण मुज़्तर

माँग लेना सिला तो जाएज़ है

रख़्शंदा नवेद

अना से देखो कितना भर गए हैं

रजनीश सचन

सोचिए गर्मी-ए-गुफ़्तार कहाँ से आई

राज नारायण राज़

कू-ए-जानाँ मुझ से हरगिज़ इतनी बेगाना न हो

रईस अमरोहवी

अब के बिखरा तो मैं यकजा नहीं हो पाऊँगा

राहुल झा

पुर्सिश-ए-हाल की फ़ुर्सत तुम्हें मुमकिन है न हो

इक़बाल अज़ीम

कहीं शबनम कहीं ख़ुशबू कहीं ताज़ा कली रखना

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

दिल भी पत्थर सीना पत्थर आँख पे पट्टी रक्खी है

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

कुछ बला और कुछ सितम ही सही

इन्दिरा वर्मा

मैं सियह-रू अपने ख़ालिक़ से जो ने'मत माँगता

इमदाद अली बहर

है दिल-ए-सोज़ाँ में तूर उस की तजल्ली-गाह का

इमाम बख़्श नासिख़

तेरी ख़ुशबू से मोअत्तर है ज़माना सारा

इमाम अाज़म

क़द बढ़ाने के लिए बौनों की बस्ती में चलो

इमाम अाज़म

जो मज़े आज तिरे ग़म के अज़ाबों में मिले

इमाम अाज़म

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