संभव Poetry (page 10)

जान ही जाए तो जाए दर्द-ए-दिल

हफ़ीज़ जौनपुरी

उट्ठो मरने का हक़ इस्तिमाल करो

हबीब जालिब

ज़र्रे ही सही कोह से टकरा तो गए हम

हबीब जालिब

झूटी ख़बरें घड़ने वाले झूटे शे'र सुनाने वाले

हबीब जालिब

दिल-ए-पुर-शौक़ को पहलू में दबाए रक्खा

हबीब जालिब

ख़ुश-नज़र है न ख़ुश-ख़याल है ये

हबाब तिर्मिज़ी

विरासत

गुलज़ार

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

तड़प तो आज भी कुछ कम नहीं है

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

जितना कम सामान रहेगा

गोपालदास नीरज

मिरे पर न बाँधो

ग़ज़ाला ख़ाकवानी

अपने अशआर को रुस्वा सर-ए-बाज़ार करूँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हिकायत-ए-इश्क़ से भी दिल का इलाज मुमकिन नहीं कि अब भी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मता-ए-बर्ग-ओ-समर वही है शबाहत-ए-रंग-ओ-बू वही है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

न होते शाद आईन-ए-गुलिस्ताँ देखने वाले

ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी

शम्अ-रू आशिक़ को अपने यूँ जलाना चाहिए

ग़मगीन देहलवी

तमाम उम्र उसे चाहना न था मुमकिन

ग़ालिब अयाज़

फिर यही रुत हो ऐन मुमकिन है

ग़ालिब अयाज़

कभी गुमान कभी ए'तिबार बन के रहा

ग़ालिब अयाज़

हुस्न के ज़ेर-ए-बार हो कि न हो

ग़ालिब अयाज़

दिल अगर माइल-ए-इ'ताब न हो

ग़व्वास क़ुरैशी

सर किया ज़ुल्फ़ की शब को तो सहर तक पहुँचे

ग़फ़्फ़ार बाबर

निभेगी किस तरह दिल सोचता है

फ़ुज़ैल जाफ़री

सितारों से उलझता जा रहा हूँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

राह में उस की चलें और इम्तिहाँ कोई न हो

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

कैसे मुमकिन है कि क़िस्से जिस से सब वाबस्ता हों

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

राह में उस की चलें और इम्तिहाँ कोई न हो

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

ज़मीं से रिश्ता-ए-दीवार-ओ-दर भी रखना है

फ़ातिमा हसन

सफ़-ए-मातम पे जो हम नाचने गाने लग जाएँ

फ़रताश सय्यद

इश्क़ हूँ जुरअत-ए-इज़हार भी कर सकता हूँ

फ़रताश सय्यद

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