राह में उस की चलें और इम्तिहाँ कोई न हो
कैसे मुमकिन है कि आतिश हो धुआँ कोई न हो
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जब उन की बज़्म में हर ख़ास ओ आम रुस्वा है
कैसे मुमकिन है कि क़िस्से जिस से सब वाबस्ता हों
किसी को सोचना दिल का गुदाज़ हो जाना
तुझ से दिल में जो गिला था वो न लाए लब पर
शिकवा हम तुझ से भला तेज़ हवा क्या करते
निकला जो चिलमनों से वो चेहरा आफ़्ताबी
जुगनू हवा में ले के उजाले निकल पड़े
बढ़ाना हाथ पकड़ने को रंग मुट्ठी में
ये सोचा है कि तुझ को सोचना अब छोड़ दूँगा मैं