बढ़ाना हाथ पकड़ने को रंग मुट्ठी में
तो तितलियों के परों का दराज़ हो जाना
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ये सोचा है कि तुझ को सोचना अब छोड़ दूँगा मैं
राह में उस की चलें और इम्तिहाँ कोई न हो
किसी को सोचना दिल का गुदाज़ हो जाना
तुझ से दिल में जो गिला था वो न लाए लब पर
कहानी हो कोई भी तेरा क़िस्सा हो ही जाती है
जब उन की बज़्म में हर ख़ास ओ आम रुस्वा है
कैसे मुमकिन है कि क़िस्से जिस से सब वाबस्ता हों
जुगनू हवा में ले के उजाले निकल पड़े
निकला जो चिलमनों से वो चेहरा आफ़्ताबी
शिकवा हम तुझ से भला तेज़ हवा क्या करते