माणिक Poetry

अंधी काली रात का धब्बा

वज़ीर आग़ा

जो तुझे देख के मबहूत हुआ

सिराज औरंगाबादी

जब सें तुझ इश्क़ की गरमी का असर है मन में

सिराज औरंगाबादी

अजब अहवाल देखा इस ज़माने के अमीरों का

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

टाँकों से ज़ख़्म-ए-पहलू लगता है कंखजूरा

शाह नसीर

पामाल-ए-राह-ए-इश्क़ हैं ख़िल्क़त की खा ठोकर भी हम

शाह नसीर

इक क़ाफ़िला है बिन तिरे हम-राह सफ़र में

शाह नसीर

अब्र-ए-दीदा का मिरे हो जो न ओझढ़ पानी

शाद लखनवी

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ

ग़ालिब

आईना

फख्र ज़मान

पत्थर की ज़बान

फ़हमीदा रियाज़

ऐ जान शब-ए-हिज्राँ तिरी सख़्त बड़ी है

फ़ाएज़ देहलवी

बुत-साज़

अख़्तर उस्मान

ये सारे फूल ये पत्थर उसी से मिलते हैं

अकबर मासूम

शीराज़ की मय मर्व के याक़ूत सँभाले

अहमद जहाँगीर

आशिक़ बिपत के मारे रोते हुए जिधर जाँ

आबरू शाह मुबारक

क्या बनाए साने-ए-क़ुदरत ने प्यारे हाथ पाँव

आग़ा अकबराबादी

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