आईना

मैं अपनी सूरत को आईने में

हूँ देख कर आज सख़्त हैराँ

वो ख़ूबसूरत हिरन सी आँखें

कहाँ गईं क्या हुआ है उन को

वहाँ तो अब दो गढ़े हैं बाक़ी

मुहीब सुनसान और वीराँ

गुलाब से सुर्ख़ होंट मेरे

ख़जिल थे याक़ूत-ओ-ला'ल जिन से

जमा हुआ उन पे देखती हूँ

बहुत से लोगों का ख़ून-ए-नाहक़

ये मेरा पीला सा ज़र्द चेहरा

नहीं है इक ख़ूँ की बूँद जिस में

ये मुर्दनी देख कर मुझे तो

बड़ा ही ख़ौफ़ आ रहा है ख़ुद से

मैं सोचती हूँ ये भोली दुनिया

है कितनी मा'सूम और नादाँ

कि फिर भी मुझ को समझ रही है

हसीन और नाज़नीन अब तक

मगर नहीं मैं तो वाक़ई हूँ

बहुत हसीन और ख़ूबसूरत

ये आइना झूट बोलता है

दरोग़-गो है

मैं तोड़ दूँगी इसे अभी फिर

कभी न देखूँगी इस में चेहरा

सखी वो आईना मुझ को ला दे

जो मुझ को इक बार फिर दिखा दे

मिरी वो पहली सी प्यारी सूरत

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Aaina In Hindi By Famous Poet Fakhr Zaman. Aaina is written by Fakhr Zaman. Complete Poem Aaina in Hindi by Fakhr Zaman. Download free Aaina Poem for Youth in PDF. Aaina is a Poem on Inspiration for young students. Share Aaina with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.