ज़बां Poetry

ऐसा नहीं कि मुँह में हमारे ज़बाँ नहीं

फ़र्रुख़ जाफ़री

दूसरा जन्म

बलराज कोमल

दस्तूर साज़ी की कोशिश

रज़ा नक़वी वाही

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

राब्ता टूट न जाए कहीं ख़ुद-बीनी से

असरार ज़ैदी

राहत-ए-नज़र भी है वो अज़ाब-ए-जाँ भी है

महमूद शाम

यहाँ-वहाँ से इधर-उधर से न जाने कैसे कहाँ से निकले

आफ़्ताब शकील

मैं रस्ते में जहाँ ठहरा हुआ था

वफ़ा नक़वी

देख कर वहशत निगाहों की ज़बाँ बेचैन है

गौतम राजऋषि

सब ने देखा मुझे उठता हुआ मेरे घर से

अजमल सिद्दीक़ी

ख़ुश-शनासी का सिला कर्ब का सहरा हूँ मैं

अब्दुल्लाह कमाल

यौम-ए-बर्क़

बिर्ज लाल रअना

सूरज की पहली किरन

अमजद इस्लाम अमजद

मुझे तलाश करो

अहमद नदीम क़ासमी

चारागर

दर्शन सिंह

फिर ये मुमकिन ही नहीं है कि सँभालो मुझ को

हमारे शहर में आने की सूरत चाहती हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

जाने हम ये किन गलियों में ख़ाक उड़ा कर आ जाते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

फ़रज़ाना हूँ और नब्ज़-शनास-ए-दो-जहाँ हूँ

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

घर नहीं बस्ती नहीं शोर-ए-फ़ुग़ाँ चारों तरफ़ है

ज़ुबैर शिफ़ाई

अंजाम क़िस्सा-गो का

ज़ुबैर रिज़वी

अपनी तश्हीर करे या मुझे रुस्वा देखे

ज़िया शबनमी

इम्कान

ज़िया जालंधरी

शम-ए-हक़ शोबदा-ए-हर्फ़ दिखा कर ले जाए

ज़िया जालंधरी

शादाब शाख़-ए-दर्द की हर पोर क्यूँ नहीं

ज़िया जालंधरी

ख़ुद को समझा है फ़क़त वहम-ओ-गुमाँ भी हम ने

ज़िया जालंधरी

तामील-ए-वफ़ा का अहद-नामा

ज़ेहरा निगाह

भड़कती आग है शो'लों में हाथ डाले कौन

ज़ेब ग़ौरी

इल्म में झींगर से बढ़ कर कामराँ कोई नहीं

ज़रीफ़ लखनवी

क्या बताएँ ग़म-ए-फ़ुर्क़त में कहाँ से गुज़रे

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

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