ज़बां Poetry (page 17)

दिल में तो बहुत कुछ है ज़बाँ तक नहीं आता

राम रियाज़

वो रह-ओ-रस्म न वो रब्त-ए-निहाँ बाक़ी है

राम कृष्ण मुज़्तर

कहीं राज़-ए-दिल अब अयाँ हो न जाए

राम कृष्ण मुज़्तर

उन को ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते

राजेन्द्र कृष्ण

किसे मालूम था इक दिन मोहब्बत बे-ज़बाँ होगी

राजेन्द्र कृष्ण

वो दिल से कम ज़बाँ ही से ज़ियादा बात करता था

राजेश रेड्डी

लिख लिख के आँसुओं से दीवान कर लिया है

राजेश रेड्डी

इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी

राजेश रेड्डी

अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम

राजेश रेड्डी

वो सवालात मुझ पर उछाले गए

राजेन्द्र कलकल

लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शोला अयाँ न हो

रजब अली बेग सुरूर

'नदीम' उन की ज़बाँ पर फिर हमारा नाम है शायद

राज कुमार सूरी नदीम

गुज़ारे तुम ने कैसे रोज़-ओ-शब हम से ख़फ़ा हो कर

राज कुमार सूरी नदीम

दुनिया में जो समझते थे बार-ए-गिराँ मुझे

रईस सिद्दीक़ी

मुक़र्रेबीन में रम्ज़-आशना कहाँ निकले

रईस अमरोहवी

कू-ए-जानाँ मुझ से हरगिज़ इतनी बेगाना न हो

रईस अमरोहवी

ऐ दिल शरीक-ए-ताइफ़ा-ए-वज्द-ओ-हाल हो

रईस अमरोहवी

कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी मैं ने

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

न शिकवे हैं न फ़रियादें न आहें हैं न नाले हैं

राही शहाबी

अपने ग़रीब दिल की बात करते हैं राएगाँ कहाँ

इरम लखनवी

अंजाम-ए-वफ़ा भी देख लिया अब किस लिए सर ख़म होता है

इक़बाल सुहैल

अहल-ए-फ़न अहल-ए-अदब अहल-ए-क़लम कहते रहे

इक़बाल माहिर

जो ज़ख़्म जम्अ किए आँख-भर सुनाता हूँ

इक़बाल कौसर

अपना घर छोड़ के हम लोग वहाँ तक पहुँचे

इक़बाल अज़ीम

वो देखा ख़्वाब क़ासिर जिस से है अपनी ज़बाँ और हम

इंशा अल्लाह ख़ान

लग जा तू मिरे सीना से दरवाज़ा को कर बंद

इंशा अल्लाह ख़ान

जाड़े में क्या मज़ा हो वो तो सिमट रहे हों

इंशा अल्लाह ख़ान

जब तक कि ख़ूब वाक़िफ़-ए-राज़-ए-निहाँ न हूँ

इंशा अल्लाह ख़ान

वो अजीब शख़्स था भीड़ में जो नज़र में ऐसे उतर गया

इन्दिरा वर्मा

सुख़न के सारे सलीक़े ज़बाँ में रखता है

इनाम-उल-हक़ जावेद

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