ज़बां Poetry (page 15)

रू-ए-ज़मीं नहीं कि सर-ए-आसमाँ नहीं

रोहित सोनी ‘ताबिश’

कोई ख़्वाब था जो बिखर गया कोई दर्द था जो ठहर गया

रिज़वानूरर्ज़ा रिज़वान

बनारस

रियाज़ लतीफ़

ले जाऊँ कहीं उन को बदन पार ही रक्खूँ

रियाज़ लतीफ़

हम को 'रियाज़' जानते हैं मानते हैं सब

रियाज़ ख़ैराबादी

धोके से पिला दी थी उसे भी कोई दो घूँट

रियाज़ ख़ैराबादी

ये कोई बात है सुनता न बाग़बाँ मेरी

रियाज़ ख़ैराबादी

उफ़ रे उभार उफ़ रे ज़माना उठान का

रियाज़ ख़ैराबादी

थका ले और दौर-ए-आसमाँ तक

रियाज़ ख़ैराबादी

रहे हम आशियाँ में भी तो बर्क़-ए-आशियाँ हो कर

रियाज़ ख़ैराबादी

पी ली हम ने शराब पी ली

रियाज़ ख़ैराबादी

जो हम आए तो बोतल क्यूँ अलग पीर-ए-मुग़ाँ रख दी

रियाज़ ख़ैराबादी

जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह

रियाज़ ख़ैराबादी

फ़रियाद-ए-जुनूँ और है बुलबुल की फ़ुग़ाँ और

रियाज़ ख़ैराबादी

बाम पर आए कितनी शान से आज

रियाज़ ख़ैराबादी

मेरे अफ़्कार ने जिस शय से जिला पाई है

रियासत अली ताज

खुली है कुंज-ए-क़फ़स में मिरी ज़बाँ सय्याद

रिन्द लखनवी

तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे

रिन्द लखनवी

नहीं क़ौल से फ़ेल तेरे मुताबिक़

रिन्द लखनवी

गले लगाएँ बलाएँ लें तुम को प्यार करें

रिन्द लखनवी

छुप के घर ग़ैर के जाया न करो

रिन्द लखनवी

अल्लाह के भी घर से है कू-ए-बुताँ अज़ीज़

रिन्द लखनवी

तू मिरी बात का जवाब न दे

रिफ़अत सुलतान

सफ़र-ए-ज़िंदगी नहीं आसाँ

रिफ़अत सुलतान

ना-आश्ना-ए-दर्द नहीं बेवफ़ा नहीं

रिफ़अत सुलतान

हुए जब से मोहब्बत-आश्ना हम

रिफ़अत सुलतान

आँच आएगी न अंदर की ज़बाँ तक ऐ दिल

रियाज़ मजीद

धूप को कुछ और जलना चाहिए

रेनू नय्यर

धूप को कुछ और जलना चाहिए

रेनू नय्यर

मेहमान-ए-ख़ोसूसी

रज़ा नक़वी वाही

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