ज़बां Poetry (page 13)

सुब्ह-ए-सफ़र का राज़ किसी पर यहाँ न खोल

सलीम शाहिद

रौशन सुकूत सब उसी शो'ला-बयाँ से है

सलीम शाहिद

मत पूछ कि इस पैकर-ए-ख़ुश-रंग में क्या है

सलीम शाहिद

जुरअत-ए-इज़हार का उक़्दा यहाँ कैसे खुले

सलीम शाहिद

सहराओं में जा पहुँची है शहरों से निकल कर

सलीम बेताब

मंज़िल-ए-बे-जहत की ख़ैर सई-ए-सफ़र है राएगाँ

सलीम अहमद

एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई

सलीम अहमद

पीतल का साँप

सलाम मछली शहरी

ली ज़बाँ उस की जो मुँह में हो गया ज़ौक़-ए-नबात

सख़ी लख़नवी

निस्बत वही माह-ए-आसमाँ से

सख़ी लख़नवी

हमें तो हर्फ़-ए-तमन्ना ज़बाँ पे लाना है

सज्जाद सय्यद

ज़हर का सफ़र

सज्जाद बाक़र रिज़वी

ज़बाँ को ज़ाइका-ए-शेर-ए-तर नहीं मिलता

सज्जाद बाक़र रिज़वी

तुझे मैं मिलूँ तो कहाँ मिलूँ मिरा तुझ से रब्त मुहाल है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

राहों के ऊँच-नीच ज़रा देख-भाल के

सज्जाद बाक़र रिज़वी

है दुकान-ए-शौक़ भरी हुई कोई मेहरबाँ हो तो ले के आ

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हिजाबात उठ रहे हैं दरमियाँ से

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

जाने फिर मुँह में ज़बाँ रखने का मसरफ़ क्या है

साइमा असमा

सुनते रहते हैं फ़क़त कुछ वो नहीं कह सकते

साइमा असमा

फूल इस ख़ाक-दाँ के हम भी हैं

सैफ़ुद्दीन सैफ़

वो अब्र साया-फ़गन था जो रहमतों की तरह

सैफ़ अली

दिल में रहना है परेशान ख़यालों का हुजूम

साइब आसमी

ख़ुदाया इश्क़ में अच्छी ये शर्त-ए-इम्तिहाँ रख दी

साहिर सियालकोटी

विर्सा

साहिर लुधियानवी

जश्न-ए-ग़ालिब

साहिर लुधियानवी

'गाँधी' हो या 'ग़ालिब' हो

साहिर लुधियानवी

धरती की सुलगती छाती से बेचैन शरारे पूछते हैं

साहिर लुधियानवी

बहुत घुटन है

साहिर लुधियानवी

ऐ नई नस्ल

साहिर लुधियानवी

बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले

साहिर लुधियानवी

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