फूल इस ख़ाक-दाँ के हम भी हैं
फूल इस ख़ाक-दाँ के हम भी हैं
मुद्दई दो जहाँ के हम भी हैं
बहते धारे पे है क़याम अपना
साथ मौज-ए-रवाँ के हम भी हैं
कह रहा है सुकूत-ए-लाला-ओ-गुल
ज़ख़्म-ख़ुर्दा ज़बाँ के हम भी हैं
दूर रहते हैं क्यूँ जहाँ वाले
रहने वाले जहाँ के हम भी हैं
साथ मिस्ल-ए-ग़ुबार हो लेंगे
मुंतज़िर कारवाँ के हम भी हैं
'सैफ़' ये चश्मकें ये रंग-ए-बहार
क्या इसी गुल्सिताँ के हम भी हैं
(474) Peoples Rate This