जंगल Poetry

वो हातिफ़ की ज़बान में कलाम करने लगी

जवाज़ जाफ़री

गुंग हैं सारी ज़मीनें आसमाँ हैरत-ज़दा

आज़ाद हुसैन आज़ाद

रौशनी के सिलसिले ख़्वाबों में ढल कर रह गए

असरार ज़ैदी

नए आदमी का कंफ़ेशन

ग़ज़नफ़र

हिज्र

हारिस ख़लीक़

दूर किनारा

मीराजी

मुझ से पूछो

सहराओं के दोस्त थे हम ख़ुद-आराई से ख़त्म हुए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

कभी ख़ुशबू कभी आवाज़ बन जाना पड़ेगा

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

छोड़ कर दिल में गई वहशी हवा कुछ भी नहीं

ज़ुहूर नज़र

सम्तों का ज़वाल

ज़ुबैर रिज़वी

ज़िंदगी ऐसे घरों से तो खंडर अच्छे थे

ज़ुबैर रिज़वी

तुम ने भी उन से ही मिलना होता है

ज़िया मज़कूर

मेरे कमरे में इक ऐसी खिड़की है

ज़िया मज़कूर

दुख तमाशा तो नहीं है कि दिखाएँ बाबा

ज़िया जालंधरी

यूँ हसरतों की गर्द में था दिल अटा हुआ

ज़िया फ़तेहाबादी

याद

ज़ीशान साहिल

रंग

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

मोहब्बत के रास्ते में

ज़ीशान साहिल

जवाहर-लाल यूनवर्सिटी के तलबा के लिए

ज़ीशान साहिल

हमारे ख़्वाब कहीं नहीं हैं

ज़ीशान साहिल

घूमते हुए ग्लोब पर

ज़ीशान साहिल

एक लड़की ने आईना देखा

ज़ीशान साहिल

आप क्या करते हैं

ज़ीशान साहिल

यूँ बोली थी चिड़िया ख़ाली कमरे में

ज़ीशान साहिल

ख़ंजर चमका रात का सीना चाक हुआ

ज़ेब ग़ौरी

गर्म लहू का सोना भी है सरसों की उजयाली में

ज़ेब ग़ौरी

गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत

ज़ेब ग़ौरी

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