घूमते हुए ग्लोब पर

घूमते हुए ग्लोब पर

हम अपने पाँव जमाने की कोशिश करते हैं

और गिर पड़ते हैं दुनिया के किसी और हिस्से में

और फिर वहीं से अपनी कोशिश दोबारा शुरूअ कर देते हैं

और फिर कहीं और से, और फिर

हम एक ऐसी जंग लड़ रहे हैं

जिस में दुश्मन को जीतने के लिए लड़ने की भी ज़रूरत नहीं

हमें मालूम है अपनी शिकस्त के बारे में

और हमें मालूम है घूमते हुए ग्लोब पर

भूरे पहाड़, हरे जंगल और नीला पानी मौजूद है

ग्लोब के साथ घूमते हुए

मैं जब तुम तक पहुँचता हूँ

तुम दूसरी तरफ़ चली जाती हो

जब हमारी तरफ़ दिन होता है

तुम्हारे हिस्से में रात आ जाती है

और जब तुम्हारे हिस्से में दिन होता है

तो रात हमारा मुक़द्दर होती है

घूमते हुए ग्लोब पर

मैं उस हिस्से तक पहुँचना चाहता हूँ

जो ग्लोब के साथ नहीं घूमता

और जहाँ से हम ग्लोब को घूमता हुआ

देख सकते हैं

(1071) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ghumte Hue Glob Par In Hindi By Famous Poet Zeeshan Sahil. Ghumte Hue Glob Par is written by Zeeshan Sahil. Complete Poem Ghumte Hue Glob Par in Hindi by Zeeshan Sahil. Download free Ghumte Hue Glob Par Poem for Youth in PDF. Ghumte Hue Glob Par is a Poem on Inspiration for young students. Share Ghumte Hue Glob Par with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.