ज़हीर सिद्दीक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़हीर सिद्दीक़ी

ज़हीर सिद्दीक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़हीर सिद्दीक़ी
नामज़हीर सिद्दीक़ी
अंग्रेज़ी नामZaheer Siddiqui

ज़र्रे ज़र्रे में बिखर जाना है तकमील-ए-हयात

उस के अल्फ़ाज़-ए-तसल्ली ने रुलाया मुझ को

न जाने हम से गिला क्यूँ है तिश्ना-कामों को

जैसे जैसे आगही बढ़ती गई वैसे 'ज़हीर'

इतने चेहरों में मुझे है एक चेहरे की तलाश

दर्द तो ज़ख़्म की पट्टी के हटाने से उठा

पस्पाई

मकीन ही अजीब हैं

असीर-ए-ज़ात-ए-रौशनी

ज़ख़्म-ए-ताज़ा बर्ग-ए-गुल में मुंतक़िल होते गए

वजूद उस का कभी भी न लुक़्मा-ए-तर था

सूखे हुए पत्तों में आवाज़ की ख़ुशबू है

ख़्वाब-गाहों से अज़ान-ए-फ़ज्र टकराती रही

जो हौसला हो तो हल्की है दोपहर की धूप

हर गुल-ए-ताज़ा हमारे हाथ पर बैअत करे

हाँ वो मैं ही था कि जिस ने ख़्वाब ढोया सुब्ह तक

दर्द तो ज़ख़्म की पट्टी के हटाने से उठा

चंद मोहमल सी लकीरें ही सही इफ़्शा रहूँ

बे-बर्ग-ओ-बार राह में सूखे दरख़्त थे

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