चुपचाप Poetry

कितने में बनती है मोहर ऐसी

अहमद जावेद

आधों की तरफ़ से कभी पौनों की तरफ़ से

आदिल मंसूरी

मेरी दोस्त

हरबंस मुखिया

सुकून

हरबंस मुखिया

सुकूत-ए-शब

अज़हर क़ादिरी

मैं सुन नहीं सकता

एहतिशाम अख्तर

किस के नग़्मे गूँजते हैं ज़िंदगी के साज़ में

सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सहराओं के दोस्त थे हम ख़ुद-आराई से ख़त्म हुए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

दिल में रहता है कोई दिल ही की ख़ातिर ख़ामोश

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

बड़ी मुश्किल कहानी थी मगर अंजाम सादा है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

मुझे तुम शोहरतों के दरमियाँ गुमनाम लिख देना

ज़ुबैर रिज़वी

उन आँखों की हैरत और दबीज़ करूँ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

वक़्त कातिब है

ज़िया जालंधरी

सुब्ह से शाम तक

ज़िया जालंधरी

आज की बात

ज़ेहरा निगाह

वो जो इक शक्ल मिरे चार तरफ़ बिखरी थी

ज़ेहरा निगाह

शाइर

ज़ीशान साहिल

शहरी सहूलतें

ज़ीशान साहिल

रंग

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

महमूद दरवेश के लिए ख़त

ज़ीशान साहिल

गड़ही मेरा

ज़ीशान साहिल

एक मंज़र की ख़ामोशी

ज़ीशान साहिल

दूसरा आसमान

ज़ीशान साहिल

आधी ज़िंदगी

ज़ीशान साहिल

रात की ख़ामोशी का माथा ठंका था

ज़िशान इलाही

ख़्वाब सितारे होते होंगे लेकिन आँखें रेत

ज़ाहिद शम्सी

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