गड़ही मेरा

मैं था और फूल थे इक गोशा-ए-तन्हाई में

हम से कुछ दूर परिंदे भी थे गहराई में

नील-गूँ आसमाँ शफ़्फ़ाफ़ नज़र आता था

बहता पानी भी बहुत साफ़ नज़र आता था

धूप थी तेज़ मगर दिल को भली लगती थी

वादी-ए-सब्ज़ मोहब्बत की गली लगती थी

चादरें ओढ़े हुए लड़कियाँ हैरान सी थीं

मेरे हम-राह वो इक ख़्वाब-ए-परेशान सी थीं

बात करते हुए हँसते हुए डर जाती थीं

सुर्ख़ फूलों के सिमटने पे बिखर जाती थीं

जिस्म से दिल के तअल्लुक़ का हवाला भी न था

खोई चीज़ों को कोई ढूँडने वाला भी न था

हर तरफ़ गुज़रे हुए वक़्त की ख़ामोशी थी

याद इक याद न थी सिर्फ़ फ़रामोशी थी

ख़त्म होती हुई इक शाम अधूरी थी बहुत

ज़िंदगी से ये मुलाक़ात ज़रूरी थी बहुत

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GaDhi Mera In Hindi By Famous Poet Zeeshan Sahil. GaDhi Mera is written by Zeeshan Sahil. Complete Poem GaDhi Mera in Hindi by Zeeshan Sahil. Download free GaDhi Mera Poem for Youth in PDF. GaDhi Mera is a Poem on Inspiration for young students. Share GaDhi Mera with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.