थकावट Poetry

बे-साया पेड़

काशिफ़ रफ़ीक़

नूर अँधेरे की फ़सीलों पे सजा देता हूँ

तीरगी

ज़िया जालंधरी

आज ही महफ़िल सर्द पड़ी है आज ही दर्द फ़रावाँ है

ज़िया जालंधरी

नया घर

ज़ेहरा निगाह

सिर्फ़ हम ही तो नहीं टूटे हैं

ज़करिय़ा शाज़

किस क़यामत की घुटन तारी है

ज़करिय़ा शाज़

कई दिलों में पड़ी इस से शोर-ओ-शर की तरह

ज़ाहिद फ़ारानी

गाड़ी की खिड़की से देखा शब को उस का शहर

ज़ाहिद फ़ारानी

बस्ती बस्ती जंगल जंगल घूमा मैं

ज़फ़र ताबिश

मोहब्बत के तआ'क़ुब में थकन से चूर होने तक

वजीह सानी

आग अपने ही दामन की ज़रा पहले बुझा लो

वहीद अख़्तर

दिल को क़रार मिलता है अक्सर चुभन के बा'द

तासीर सिद्दीक़ी

ज़ेहन में हो कोई मंज़िल तो नज़र में ले जाऊँ

तसव्वुर ज़ैदी

उस के बदन का लम्स अभी उँगलियों में है

तारिक़ जामी

भूली-बिसरी रात

तख़्त सिंह

मिला किसी से न अच्छा लगा सुख़न इस बार

तफ़ज़ील अहमद

समाअतों में बहुत दूर की सदा ले कर

स्वप्निल तिवारी

साअत-ए-मर्ग-ए-मुसलसल हर नफ़स भारी हुई

सुल्तान अख़्तर

ख़्वाबों की लज़्ज़तों पे थकन का ग़िलाफ़ था

सुल्तान अख़्तर

मुझ से कहती हैं वो उदास आँखें

सिद्दीक़ शाहिद

शहर सहरा है घर बयाबाँ है

सिद्दीक़ शाहिद

यही सफ़र की तमन्ना यही थकन की पुकार

शाज़ तमकनत

ख़्वार-ओ-रुसवा थे यहाँ अहल-ए-सुख़न पहले भी

शाज़ तमकनत

वक़्त आख़िर ले गया वो शोख़ियाँ वो बाँकपन

शायान क़ुरैशी

सब्र-ओ-क़रार टूट गया इज़्तिराब से

शायान क़ुरैशी

नींद के वास्ते वैसे भी ज़रूरी है थकन

शारिक़ कैफ़ी

हाथ आता तो नहीं कुछ प तक़ाज़ा कर आएँ

शारिक़ कैफ़ी

दुनिया शायद भूल रही है

शारिक़ कैफ़ी

जो चाहते हो कि मंज़िल तुम्हारी जादा हो

शम्स तबरेज़ी

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