मूर्ति Poetry

वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा

अनवर अंजुम

ये सन्नाटा है मैं हूँ चाँदनी में

अमित सतपाल तनवर

क्यूँ यूरिश-ए-तरब में भी ग़म याद आ गए

एहतिशाम हुसैन

चाँद तारे जिसे हर शब देखें

अनवर अंजुम

किस में ख़ूबी है जलाने में कि जल जाने हैं

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

ज़ुहूर नज़र

ख़ुद फ़रेब

ज़िया जालंधरी

मुंजमिद होंटों पे है यख़ की तरह हर्फ़-ए-जुनूँ

ज़िया जालंधरी

लो आज समुंदर के किनारे पे खड़ा हूँ

ज़िया फ़तेहाबादी

दिल अपना सैद-ए-तमन्ना है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

हम लोग जो ख़ाक छानते हैं

ज़ेहरा निगाह

ख़ुदा की भी नहीं सुनते हैं ये बुत

ज़ेबा

न होगा हश्र महशर में बपा क्या

ज़ेबा

किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं

ज़ेबा

आबला-पाई है महरूमी है रुस्वाई है

ज़रीना सानी

उस पे करना मिरे नालों ने असर छोड़ दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

कुछ ऐसे हाल-ओ-माज़ी तेरे अफ़्साने भी होते हैं

ज़ेब बरैलवी

इश्क़ की मंज़िल में अब तक रस्म मर जाने की है

ज़ेब बरैलवी

नीम-लिबासी का नौहा

ज़ाहिद इमरोज़

चमन में सैर-ए-गुल को जब कभी वो मह-जबीं निकले

ज़ाहिद चौधरी

मिरा ही बन के वो बुत मुझ से आश्ना न हुआ

ज़हीर काश्मीरी

कुछ बस न चला जज़्बा-ए-ख़ुद-काम के आगे

ज़हीर काश्मीरी

वही मिरे ख़स-ओ-ख़ाशाक से निकलता है

ज़फ़र इक़बाल

फिर कोई शक्ल नज़र आने लगी पानी पर

ज़फ़र इक़बाल

जब भी वो मुझ से मिला रोने लगा

ज़फ़र हमीदी

पुकारे जा रहे हो अजनबी से चाहते क्या हो

ज़फ़र गोरखपुरी

चल पड़े हम दश्त-ए-बे-साया भी जंगल हो गया

ज़फ़र गौरी

मोहब्बत पे शायद ज़वाल आ रहा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

ग़म इतने अपने दामन-ए-दिल से लिपट गए

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

मज़हब-ए-इंसानियत

यूसुफ़ राहत

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