मूर्ति Poetry (page 27)

नज़्अ' की सख़्ती बढ़ी उन को पशेमाँ देख कर

अब्बास अली ख़ान बेखुद

हर्फ़-ए-शिकवा न लब पे लाओ तुम

अातिश बहावलपुरी

हिर्स दौलत की न इज़्ज़ ओ जाह की

आसी ग़ाज़ीपुरी

ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़ुदा-परस्त मिले और न बुत-परस्त मिले

आल-ए-अहमद सूरूर

जी चाहता है उस बुत-ए-काफ़िर के इश्क़ में

आग़ा अकबराबादी

बुत नज़र आएँगे माशूक़ों की कसरत होगी

आग़ा अकबराबादी

शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना

आग़ा अकबराबादी

चाहत ग़म्ज़े जता रही है

आग़ा अकबराबादी

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