रात Poetry

दिन हो कि हो वो रात अभी कल की बात है

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

दस्तूर साज़ी की कोशिश

रज़ा नक़वी वाही

तहरीर

बलराज कोमल

मेरे आसमान के चाँद को ख़बर दो

मर्यम तस्लीम कियानी

पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था

फ़रह शाहिद

शम्अ'

मुबश्शिर अली ज़ैदी

नज़्म

मुबश्शिर अली ज़ैदी

जो महका रहे तेरी याद सुहानी में

बीना गोइंदी

चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद

अहमद नदीम क़ासमी

सीढ़ियाँ

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

मैं ने बाग़ की जानिब पीठ कर ली

जवाज़ जाफ़री

14-अगस्त

हबीब जालिब

कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया

अनवर अंजुम

वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा

अनवर अंजुम

तेज़ हो जाएँ हवाएँ तो बगूला हो जाऊँ

ज़ुबैर शिफ़ाई

चाँद-तारों ने कोई शय तो छुपाई हुई है

रश्मि सबा

मुँह अंधेरे जगा के छोड़ गई

अहमद मुश्ताक़

जब से पड़ी है उन से मुलाक़ात की तरह

अनवर अंजुम

सियाह-रात पशेमाँ है हम-रकाबी से

अहमद फ़ाख़िर

दिल में वीरानियाँ सिसकती हैं

अनवर ख़लील

सारी रात के बिखरे हुए शीराज़े पर रक्खी हैं

अज़्म शाकरी

नहीं ख़स्ता-हाली पे ना-मुतमइन हम

अनवर शऊर

कई अँधेरों के मिलने से रात बनती है

तरकश प्रदीप

नद्दी ये जैसे मौज में दरिया से जा मिले

जानाँ मलिक

किसी के नाम को लिखते हुए मिटाते हुए

रश्मि सबा

बे-बसर आफ़ात से तकलीफ़ होती है मुझे

बशीर दादा

चाँदनी-रात में बुलाऊँ तुझे

बीना गोइंदी

ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी

आमिर अमीर

मौजों की साज़िशों ने किनारा नहीं दिया

वफ़ा नक़वी

हश्र-ए-ज़ुल्मात से दिल डरता है

महमूद शाम

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