रात Poetry (page 52)

हम अहल-ए-जब्र के नाम-ओ-नसब से वाक़िफ़ हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हामी भी न थे मुंकिर-ए-'ग़ालिब' भी नहीं थे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बिखर जाएँगे हम क्या जब तमाशा ख़त्म होगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अगर वो मिल के बिछड़ने का हौसला रखता

इफ़्फ़त ज़र्रीं

इक दिया दिल की रौशनी का सफ़ीर

इदरीस बाबर

मतला ग़ज़ल का ग़ैर ज़रूरी क्या क्यूँ कब का हिस्सा है

इदरीस बाबर

ख़ेमगी-ए-शब है तिश्नगी दिन है

इदरीस बाबर

ये तकल्लुफ़ ये मुदारात समझ में आए

इबरत मछलीशहरी

दिन के भूले को रात डसती है

इब्न-ए-सफ़ी

यूँही वाबस्तगी नहीं होती

इब्न-ए-सफ़ी

आज की रात कटेगी क्यूँ कर साज़ न जाम न तो मेहमान

इब्न-ए-सफ़ी

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

कातिक का चाँद

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

एक बार कहो तुम मेरी हो

इब्न-ए-इंशा

दिल-आशोब

इब्न-ए-इंशा

दिल पीत की आग में जलता है

इब्न-ए-इंशा

ऐ मिरे सोच-नगर की रानी

इब्न-ए-इंशा

रात के ख़्वाब सुनाएँ किस को रात के ख़्वाब सुहाने थे

इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

इब्न-ए-इंशा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

केक बिस्कुट खाएँगे उल्लू-के-पट्ठे रात दिन

हुसैन मीर काश्मीरी

क्या ख़बर थी इंक़लाब आसमाँ हो जाएगा

हुसैन मीर काश्मीरी

ढली जो शाम नज़र से उतर गया सूरज

हुसैन ताज रिज़वी

वो दिल समो ले जो दामन में काएनात का कर्ब

हुरमतुल इकराम

रहेगा अक़्ल के सीने पे ता-अबद ये दाग़

हुरमतुल इकराम

ख़्वाबों के साथ ज़ेहन की अंगड़ाइयाँ भी हैं

हुरमतुल इकराम

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