रात Poetry (page 107)

उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था

आसी ग़ाज़ीपुरी

शनासा आहटें

आशुफ़्ता चंगेज़ी

सहीह कह रहे हो

आशुफ़्ता चंगेज़ी

दयार-ए-ख़्वाब

आशुफ़्ता चंगेज़ी

आवारा परछाइयाँ

आशुफ़्ता चंगेज़ी

जिस की न कोई रात हो ऐसी सहर मिले

आशुफ़्ता चंगेज़ी

घरौंदे ख़्वाबों के सूरज के साथ रख लेते

आशुफ़्ता चंगेज़ी

दिल डूबने लगा है तवानाई चाहिए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ये और बात कि रंग-ए-बहार कम होगा

आनिस मुईन

वो कुछ गहरी सोच में ऐसे डूब गया है

आनिस मुईन

बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है

आनिस मुईन

नए ज़माने के नित-नए हादसात लिखना

आनन्द सरूप अंजुम

आज़माइश में कटी कुछ इम्तिहानों में रही

आनन्द सरूप अंजुम

अदा है ख़्वाब है तस्कीन है तमाशा है

आमिर सुहैल

अब तुम को ही सावन का संदेसा नहीं बनना

आमिर सुहैल

तू वफ़ा कर के भूल जा मुझ को

आलोक श्रीवास्तव

झिलमिलाते हुए दिन-रात हमारे ले कर

आलोक श्रीवास्तव

टीपू की आवाज़

आल-ए-अहमद सूरूर

वो जिएँ क्या जिन्हें जीने का हुनर भी न मिला

आल-ए-अहमद सूरूर

सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है

आल-ए-अहमद सूरूर

हर इक जन्नत के रस्ते हो के दोज़ख़ से निकलते हैं

आल-ए-अहमद सूरूर

हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है

आल-ए-अहमद सूरूर

शराब पीते हैं तो जागते हैं सारी रात

आग़ा अकबराबादी

वो कहते हैं उट्ठो सहर हो गई

आग़ा अकबराबादी

शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना

आग़ा अकबराबादी

हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं

आग़ा अकबराबादी

चढ़ा दिया है भगत-सिंह को रात फाँसी पर

आफ़ताब राईस पानीपती

लिबास

आदिल रज़ा मंसूरी

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