रात Poetry (page 105)

ज़लज़ले सख़्त आते रहे रात-भर

अब्दुल मन्नान तरज़ी

बज़्म में वो बैठता है जब भी आगे सामने

अब्दुल मन्नान समदी

मुन्कशिफ़ तल्ख़ी-ए-हालात न होने पाई

अब्दुल मलिक सोज़

मुझ से मेरी हयात रूठ गई

अब्दुल मलिक सोज़

सो भी जा ऐ दिल-ए-मजरूह बहुत रात गई

अब्दुल हमीद अदम

वो अहद-ए-जवानी वो ख़राबात का आलम

अब्दुल हमीद अदम

उन को अहद-ए-शबाब में देखा

अब्दुल हमीद अदम

तौबा का तकल्लुफ़ कौन करे हालात की निय्यत ठीक नहीं

अब्दुल हमीद अदम

सो के जब वो निगार उठता है

अब्दुल हमीद अदम

मुश्किल ये आ पड़ी है कि गर्दिश में जाम है

अब्दुल हमीद अदम

मुंक़लिब सूरत-ए-हालात भी हो जाती है

अब्दुल हमीद अदम

क्या बात है ऐ जान-ए-सुख़न बात किए जा

अब्दुल हमीद अदम

खुली वो ज़ुल्फ़ तो पहली हसीन रात हुई

अब्दुल हमीद अदम

ख़ैरात सिर्फ़ इतनी मिली है हयात से

अब्दुल हमीद अदम

कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ

अब्दुल हमीद अदम

जिस वक़्त भी मौज़ूँ सी कोई बात हुई है

अब्दुल हमीद अदम

छेड़ो तो उस हसीन को छेड़ो जो यार हो

अब्दुल हमीद अदम

बे-जुम्बिश-ए-अब्रू तो नहीं काम चलेगा

अब्दुल हमीद अदम

आज फिर रूह में इक बर्क़ सी लहराती है

अब्दुल हमीद अदम

सदा किसे दें 'नईमी' किसे दिखाएँ ज़ख़्म

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

हर इंसाँ अपने होने की सज़ा है

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

दुआ को हाथ मिरा जब कभी उठा होगा

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

पीरी में शौक़ हौसला-फ़रसा नहीं रहा

अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़

मिरी मैं जश्न-ए-शब-ए-मुनव्वर

अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत

अपनी हस्ती से था ख़ुद मैं बद-गुमाँ कल रात को

अब्दुल अलीम आसि

'सादेम'

अब्दुल अहद साज़

ज़िक्र हम से बे-तलब का क्या तलबगारी के दिन

अब्दुल अहद साज़

सबक़ उम्र का या ज़माने का है

अब्दुल अहद साज़

जो कुछ भी ये जहाँ की ज़माने की घर की है

अब्दुल अहद साज़

जब तक शब्द के दीप जलेंगे सब आएँगे तब तक यार

अब्दुल अहद साज़

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