ज़लज़ले सख़्त आते रहे रात-भर
ज़लज़ले सख़्त आते रहे रात-भर
घर को ढाते गिराते रहे रात-भर
आप हाँ आते जाते रहे रात-भर
वज़्अ'-दारी निभाते रहे रात-भर
सारा दिन नक़्श उन का बनाते रहे
बन गया तो मिटाते रहे रात-भर
कोई भी हम को हातिम नहीं कह सका
गरचे मोती लुटाते रहे रात-भर
दिन में सरमाया-कारी जो की दर्द की
हम ख़सारे चुकाते रहे रात-भर
सुब्ह-दम जू-ए-ख़ूँ कैसे वो बन गए
हम जो आँसू बहाते रहे रात-भर
देखिए सादगी आप की दास्ताँ
आप ही को सुनाते रहे रात-भर
तेरी यादों का सावन बरसता रहा
गुलिस्ताँ हम खिलाते रहे रात-भर
क़ामत-ए-यार पर आरज़ू की क़बा
दिल के हाथों सजाते रहे रात-भर
लम्हा लम्हा मिटे हम कोई ग़म नहीं
आप को तो बनाते रहे रात-भर
हम बिसात-ए-तमन्ना बिछाते रहे
आते आते वो आते रहे रात-भर
तेरी यादों के लम्हे भी बेदर्द थे
तुझ को मुझ से चुराते रहे रात-भर
आसमाँ पर सितारे लरज़ते रहे
अश्क 'तरज़ी' बहाते रहे रात-भर
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