हसन अकबर कमाल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हसन अकबर कमाल

हसन अकबर कमाल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हसन अकबर कमाल
नामहसन अकबर कमाल
अंग्रेज़ी नामHasan Akbar Kamal
जन्म की तारीख1946
मौत की तिथि2017

वफ़ा परछाईं की अंधी परस्तिश

पाया जब से ज़ख़्म किसी को खोने का

न टूटे और कुछ दिन तुझ से रिश्ता इस तरह मेरा

क्या तर्जुमानी-ए-ग़म-ए-दुनिया करें कि जब

कल यही बच्चे समुंदर को मुक़ाबिल पाएँगे

गए दिनों में रोना भी तो कितना सच्चा था

एक दिया कब रोक सका है रात को आने से

दिए बुझाती रही दिल बुझा सके तो बुझाए

दिल में तिरे ख़ुलूस समोया न जा सका

बनाए जाता था मैं अपने हाथ को कश्कोल

बड़ों ने उस को छीन लिया है बच्चों से

रंग-ए-सियाह के नाम एक नज़्म

माज़ी में रह जाने वाली आँखें

मशरिक़ी लड़कियों के नाम एक नज़्म

गुमनाम शहीद का कतबा

ऐ फ़ैरी-टेल

वो शख़्स तो मुझे हैरान करता जाता था

उसे शिकस्त न होने पे मान कितना था

उस इक उम्मीद को तो राहत-ए-सफ़र न समझ

सफ़्फ़ाक सराब से ज़ियादा

पाया जब से ज़ख़्म किसी को खोने का

क्या होता है ख़िज़ाँ बहार के आने जाने से

क्या गुमाँ था कि न होगा कोई हम-सर अपना

हुनर जो तालिब-ए-ज़र हो हुनर नहीं रहता

हो तेरी याद का दिल में गुज़र आहिस्ता आहिस्ता

है तन्हाई में बहना आँसुओं का

ग़ज़ल में हुस्न का उस के बयान रखना है

ग़म-ए-जाँ गुम ग़म-ए-दुनिया में तो होना मुश्किल

दुनिया में कितने रंग नज़र आएँगे नए

दुख उठाओ कितने ही घर बहार करने में

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