दिल में तिरे ख़ुलूस समोया न जा सका
पत्थर में इस गुलाब को बोया न जा सका
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ग़ज़ल में हुस्न का उस के बयान रखना है
बनाए जाता था मैं अपने हाथ को कश्कोल
गए दिनों में रोना भी तो कितना सच्चा था
क्या तर्जुमानी-ए-ग़म-ए-दुनिया करें कि जब
हो तेरी याद का दिल में गुज़र आहिस्ता आहिस्ता
क्या होता है ख़िज़ाँ बहार के आने जाने से
उसे शिकस्त न होने पे मान कितना था
न टूटे और कुछ दिन तुझ से रिश्ता इस तरह मेरा
दूध जैसा झाग लहरें रेत और ये सीपियाँ
दिए बुझाती रही दिल बुझा सके तो बुझाए