स्वभाव Poetry

कोई नहीं था हुनर-आश्ना तुम्हारे बा'द

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

फिर घड़ी आ गई अज़िय्यत की

ज़ुबैर अमरोहवी

चाक

ज़िया जालंधरी

मैसेज

ज़ेहरा अलवी

जफ़ा-पसंदों को सुनते हैं ना-पसंद हुआ

ज़ेबा

दिन है बे-कैफ़ बे-गुनाहों सा

ज़ेब ग़ौरी

कमाँ पे चढ़ के ब-शक्ल-ए-ख़दंग होना पड़ा

ज़मीर अतरौलवी

रात आँसू को तिरी आँख में देखा हम ने

ज़काउद्दीन शायाँ

वो इक झलक दिखा के जिधर से निकल गया

ज़हीर काश्मीरी

दिल मर चुका है अब न मसीहा बना करो

ज़हीर काश्मीरी

दुनिया मिज़ाज-दान-ओ-मिज़ाज-आश्ना न थी

ज़फ़र अकबराबादी

अगरचे हाल ओ हवादिस की हुक्मरानी है

याक़ूब आमिर

मुफ़लिसी में मिज़ाज शाहाना

यगाना चंगेज़ी

वहशत थी हम थे साया-ए-दीवार-ए-यार था

यगाना चंगेज़ी

क्यूँ किसी से वफ़ा करे कोई

यगाना चंगेज़ी

अगर अपनी चश्म-ए-नम पर मुझे इख़्तियार होता

यगाना चंगेज़ी

दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज

वज़ीर अली सबा लखनवी

देख कर ख़ुश-रंग उस गुल-पैरहन के हाथ पाँव

वज़ीर अली सबा लखनवी

ज़र्रा हरीफ़-ए-मेहर दरख़्शाँ है आज कल

वासिफ़ देहलवी

अगर ख़ू-ए-तहम्मुल हो तो कोई ग़म नहीं होता

वासिफ़ देहलवी

कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी

वसीम बरेलवी

दुआ करो कि कोई प्यास नज़्र-ए-जाम न हो

वसीम बरेलवी

मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़ज़ा नए बाल-ओ-पर की तलाश है

वामिक़ जौनपुरी

तरवार खींच हम को दिखाते हो जब न तब

वलीउल्लाह मुहिब

बिगाड़ना सँवारना है वक़्त के मिज़ाज पर

वली शम्सी

तिरी नज़र का तीर जब जिगर के पार हो गया

वली शम्सी

अच्छा हुआ कि इश्क़ में बर्बाद हो गए

वजीह सानी

लूटा है मुझे उस की हर अदा ने

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

सफ़र ही बाद-ए-सफ़र है तो क्यूँ न घर जाऊँ

वहीद अख़्तर

हम ने देखा है मोहब्बत का सज़ा हो जाना

वहीद अख़्तर

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