स्वभाव Poetry (page 14)

दुश्मनों को मिरे हमराज़ करोगे शायद

अफ़रोज़ आलम

जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा

अदा जाफ़री

आँखों में रूप सुब्ह की पहली किरन सा है

अदा जाफ़री

तसव्वुरात में इन को बुला के देख लिया

अबु मोहम्मद वासिल

काली ग़ज़ल सुनो न सुहानी ग़ज़ल सुनो

अबु मोहम्मद सहर

ग़म से घबरा के कभी नाला-ओ-फ़रियाद न कर

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

अदब में मुद्दई-ए-फ़न तो बे-शुमार मिले

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

अपने वहम-ओ-गुमान से निकला

अब्दुल मतीन नियाज़

अब चराग़ों में ज़िंदगी कम है

अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद

हँस के बोला करो बुलाया करो

अब्दुल हमीद अदम

फ़क़ीर किस दर्जा शादमाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा

अब्दुल हमीद अदम

आज फिर रूह में इक बर्क़ सी लहराती है

अब्दुल हमीद अदम

ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब

अब्दुल अहद साज़

मिरे बदन में लहू का कटाव ऐसा था

अब्बास ताबिश

कुंज-ए-ग़ज़ल न क़ैस का वीराना चाहिए

अब्बास ताबिश

मौत ने मुस्कुरा के पूछा है

अब्बास दाना

जो चाहते हो बदलना मिज़ाज-ए-तूफ़ाँ को

अातिश बहावलपुरी

सितम को उन का करम कहें हम जफ़ा को मेहर-ओ-वफ़ा कहें हम

अातिश बहावलपुरी

ख़मोश बैठे हो क्यूँ साज़-ए-बे-सदा की तरह

अातिश बहावलपुरी

बर्क़ बाराँ तीरगी और ज़लज़ला

आसिम शहनवाज़ शिबली

मानूस हो गए हैं ग़म-ए-ज़िंदगी से हम

आसी रामनगरी

फिर मिज़ाज उस रिंद का क्यूँकर मिले

आसी ग़ाज़ीपुरी

हवाएँ तेज़ थीं ये तो फ़क़त बहाने थे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

समझ तो ये कि न समझे ख़ुद अपना रंग-ए-जुनूँ

आले रज़ा रज़ा

हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को

आले रज़ा रज़ा

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