जो चाहते हो बदलना मिज़ाज-ए-तूफ़ाँ को
तो नाख़ुदा पे भरोसा करो ख़ुदा की तरह
Gulzar
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ग़म-ओ-अलम भी हैं तुम से ख़ुशी भी तुम से है
इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी
अपने चेहरे से जो ज़ुल्फ़ों को हटाया उस ने
तुम्हें तो अपनी जफ़ाओं की ख़ूब दाद मिली
मुझे उन से मोहब्बत हो गई है
लाख पर्दों में गो निहाँ हम थे
ये मय-ख़ाना है मय-ख़ाना तक़द्दुस उस का लाज़िम है
मुख़ालिफ़ों को भी अपना बना लिया तू ने
ख़मोश बैठे हो क्यूँ साज़-ए-बे-सदा की तरह
ज़बाँ पे शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-ख़ुदा क्यूँ है?
मुझे भी इक सितमगर के करम से
कमाल-ए-हुस्न का जिस से तुम्हें ख़ज़ाना मिला