ख़ूगर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार था इतना 'आतिश'
दर्द भी माँगा तो पहले से सिवा माँगा था
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(992) Peoples Rate This
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी
ये मय-ख़ाना है मय-ख़ाना तक़द्दुस उस का लाज़िम है
मस्लहत का यही तक़ाज़ा है
दर-हक़ीक़त इत्तिसाल-ए-जिस्म-ओ-जाँ है ज़िंदगी
जो चाहते हो बदलना मिज़ाज-ए-तूफ़ाँ को
ज़िंदगी गुज़री मिरी ख़ुश्क शजर की सूरत
मुख़ालिफ़ों को भी अपना बना लिया तू ने
उमीद उन से वफ़ा की तो ख़ैर क्या कीजे
वो मेरे क़ल्ब को छेदेगा कब गुमान में था
ये सारी बातें हैं दर-हक़ीक़त हमारे अख़्लाक़ के मुनाफ़ी
सितम को उन का करम कहें हम जफ़ा को मेहर-ओ-वफ़ा कहें हम