मुख़ालिफ़ों को भी अपना बना लिया तू ने
अजीब तरह का जादू तिरी ज़बान में था
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1084) Peoples Rate This
मुझे भी इक सितमगर के करम से
ख़ूगर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार था इतना 'आतिश'
उमीद उन से वफ़ा की तो ख़ैर क्या कीजे
इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी
ये मय-ख़ाना है मय-ख़ाना तक़द्दुस उस का लाज़िम है
जो चाहते हो बदलना मिज़ाज-ए-तूफ़ाँ को
वो मेरे क़ल्ब को छेदेगा कब गुमान में था
कमाल-ए-हुस्न का जिस से तुम्हें ख़ज़ाना मिला
गिला मुझ से था या मेरी वफ़ा से
तुम्हें तो अपनी जफ़ाओं की ख़ूब दाद मिली
हर्फ़-ए-शिकवा न लब पे लाओ तुम