तसल्ली Poetry

लापता

मुबश्शिर अली ज़ैदी

मुर्ग़-ए-मरहूम

असद जाफ़री

कातता हूँ रात-भर अपने लहू की धार को

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

तेरा ग़म भी न हो तो क्या जीना

ज़िया जालंधरी

क्या सरोकार अब किसी से मुझे

ज़िया जालंधरी

महमूद दरवेश के लिए ख़त

ज़ीशान साहिल

किस क़दर महदूद कर देता है ग़म इंसान को

ज़ीशान साहिल

फ़िक्र में डूबे थे सब और बा-हुनर कोई न था

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

उस के अल्फ़ाज़-ए-तसल्ली ने रुलाया मुझ को

ज़हीर सिद्दीक़ी

दर्द तो ज़ख़्म की पट्टी के हटाने से उठा

ज़हीर सिद्दीक़ी

देखो तो कुछ ज़ियाँ नहीं खोने के बावजूद

ज़फ़र इक़बाल

आते रहते हैं फ़लक से भी इशारे कुछ न कुछ

यासमीन हबीब

कभी सिसकी कभी आवाज़ा सफ़र जारी है

वक़ार ख़ान

बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना

वली उज़लत

सहराओं में भी कोई हमराज़ गुलों का है

वाजिद सहरी

कार्बन-पेपर

वर्षा गोरछिया

धूप जब तक सर पे थी ज़ेर-ए-क़दम पाए गए

तालिब जोहरी

मैं उस की मोहब्बत से इक दिन भी मुकर जाता

ताहिर अज़ीम

अव्वल वही सैराब था सानी भी वही था

तफ़ज़ील अहमद

शरह-ए-जाँ-सोज़-ए-ग़म-ए-अर्ज़-ए-वफ़ा क्या करते

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

रहगुज़र हो या मुसाफ़िर नींद जिस को आए है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

फ़ितरत-ए-इश्क़ गुनहगार हुई जाती है

सिराज लखनवी

जब सें तुझ इश्क़ की गरमी का असर है मन में

सिराज औरंगाबादी

ज़िंदा हो जाता हूँ मैं जब यार का आता है ख़त

श्याम सुंदर लाल बर्क़

वो गदा-गरान-ए-जल्वा सर-ए-रहगुज़ार चुप थे

शाज़ तमकनत

किसी ताँगे में फिर सामान रक्खा जा रहा है

शारिक़ कैफ़ी

रात बे-पर्दा सी लगती है मुझे

शारिक़ कैफ़ी

मैं ने हाथों में कुछ नहीं रक्खा

शमीम रविश

काफ़ी है मिरे दिल की तसल्ली को यही बात

शकील बदायुनी

ख़ुश हूँ कि मिरा हुस्न-ए-तलब काम तो आया

शकील बदायुनी

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