चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
और बीमार की दशा बिगड़ी
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Gulzar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1054) Peoples Rate This
गिला मुझ से था या मेरी वफ़ा से
इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी
ज़बाँ पे शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-ख़ुदा क्यूँ है?
मुझे उन से मोहब्बत हो गई है
ये सारी बातें हैं दर-हक़ीक़त हमारे अख़्लाक़ के मुनाफ़ी
मुख़ालिफ़ों को भी अपना बना लिया तू ने
उमीद उन से वफ़ा की तो ख़ैर क्या कीजे
वो मेरे क़ल्ब को छेदेगा कब गुमान में था
तुम्हें ज़ेबा नहीं हरगिज़ सिले की आरज़ू रखना
मस्लहत का यही तक़ाज़ा है
ग़म-ओ-अलम भी हैं तुम से ख़ुशी भी तुम से है
अपने चेहरे से जो ज़ुल्फ़ों को हटाया उस ने