अपने चेहरे से जो ज़ुल्फ़ों को हटाया उस ने
देख ली शाम ने ताबिंदा सहर की सूरत
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जो चाहते हो बदलना मिज़ाज-ए-तूफ़ाँ को
ये मय-ख़ाना है मय-ख़ाना तक़द्दुस उस का लाज़िम है
ख़ूगर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार था इतना 'आतिश'
कमाल-ए-हुस्न का जिस से तुम्हें ख़ज़ाना मिला
मुझे भी इक सितमगर के करम से
मुझे उन से मोहब्बत हो गई है
आप की हस्ती में ही मस्तूर हो जाता हूँ मैं
सितम को उन का करम कहें हम जफ़ा को मेहर-ओ-वफ़ा कहें हम
ज़िंदगी गुज़री मिरी ख़ुश्क शजर की सूरत
मुख़ालिफ़ों को भी अपना बना लिया तू ने
लाख पर्दों में गो निहाँ हम थे