दाग Poetry

14-अगस्त

हबीब जालिब

ज़ब्त की हद से भी जिस वक़्त गुज़र जाता है

शौक़ मुरादाबादी

न शिकवा लब तक आएगा न नाला दिल से निकलेगा

दाग़-ए-दिल दाग़-ए-तमन्ना मिल गया

ख़ामोश ज़मज़मे हैं मिरा हर्फ़-ए-ज़ार चुप

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

मुझ को ये वक़्त वक़्त को मैं खो के ख़ुश हुआ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

मिरी ज़ात का हयूला तिरी ज़ात की इकाई

ज़ुहैर कंजाही

क़मर-गज़ीदा नज़र से हाला कहाँ से आया

ज़ुबैर शिफ़ाई

चारों तरफ़ हैं ख़ार-ओ-ख़स दश्त में घर है बाग़ सा

ज़ुबैर शिफ़ाई

दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ

ज़िया ज़मीर

दर्द की धूप ढले ग़म के ज़माने जाएँ

ज़िया ज़मीर

बड़ा शहर

ज़िया जालंधरी

नज़र नज़र से मिलाना कोई मज़ाक़ नहीं

ज़िया फ़तेहाबादी

ये ख़ाल-ओ-ख़द मिरे अपने

ज़ेहरा निगाह

फूलों की अंजुमन में बहुत देर तक रहा

ज़ीशान साहिल

है सदफ़ गौहर से ख़ाली रौशनी क्यूँकर मिले

ज़ेब ग़ौरी

तमन्ना है किसी की तेग़ हो और अपनी गर्दन हो

ज़रीफ़ लखनवी

सुकूत-ए-शब में दिल-ए-दाग़-दाग़ रौशन है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

उभरता चाँद सियह रात के परों में था

ज़काउद्दीन शायाँ

हरे मौसम खिलेंगे सोना बन के ख़ाक बदलेगी

ज़काउद्दीन शायाँ

ये ख़्वाबों के साए

ज़ाहिदा ज़ैदी

कहाँ तक काविश-ए-इसबात-ए-पैहम

ज़ाहिदा ज़ैदी

'अनीस-नागी' के नाम

ज़ाहिद मसूद

वजूद उस का कभी भी न लुक़्मा-ए-तर था

ज़हीर सिद्दीक़ी

दर्द तो ज़ख़्म की पट्टी के हटाने से उठा

ज़हीर सिद्दीक़ी

फ़र्ज़ बरसों की इबादत का अदा हो जैसे

ज़हीर काश्मीरी

वो किस प्यार से कोसने दे रहे हैं

ज़हीर देहलवी

नक़ाब उस ने रुख़-ए-हुस्न-ए-ज़र पे डाल दिया

ज़फ़र मुरादाबादी

न कोई ज़ख़्म लगा है न कोई दाग़ पड़ा है

ज़फ़र इक़बाल

जो नारवा था इस को रवा करने आया हूँ

ज़फ़र इक़बाल

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