दाग Poetry (page 25)

कलेजे में हज़ारों दाग़ दिल में हसरतें लाखों

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

न निकला मुँह से कुछ निकली न कुछ भी क़ल्ब-ए-मुज़्तर की

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

तीर-ए-नज़र से छिद के दिल-अफ़गार ही रहा

आग़ा हज्जू शरफ़

रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे

आग़ा हज्जू शरफ़

जब से हुआ है इश्क़ तिरे इस्म-ए-ज़ात का

आग़ा हज्जू शरफ़

दरपेश अजल है गंज-ए-शहीदाँ ख़रिदिए

आग़ा हज्जू शरफ़

चलते हैं गुलशन-ए-फ़िरदौस में घर लेते हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है

अदा जाफ़री

उजाला दे चराग़-ए-रहगुज़र आसाँ नहीं होता

अदा जाफ़री

न बाम-ओ-दश्त न दरिया न कोहसार मिले

अदा जाफ़री

मसरूर हो रहे हैं ग़म-ए-आशिक़ी से हम

अबु मोहम्मद वासिल

काली ग़ज़ल सुनो न सुहानी ग़ज़ल सुनो

अबु मोहम्मद सहर

अब तक इलाज-ए-रंजिश-ए-बे-जा न कर सके

अबु मोहम्मद सहर

रता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर लावबाली का

आबरू शाह मुबारक

ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा

आबरू शाह मुबारक

जलते हैं और हम सीं जब माँगते हो प्याला

आबरू शाह मुबारक

ये दाग़-ए-इश्क़ जो मिटता भी है चमकता भी है

अबरार अहमद

यक़ीन है कि गुमाँ है मुझे नहीं मालूम

अबरार अहमद

हैराँ नहीं हैं हम कि परेशाँ नहीं हैं हम

अब्र अहसनी गनौरी

अगर हो ख़ौफ़-ज़दा ताक़त-ए-बयाँ कैसी

अब्दुर्रहीम नश्तर

पड़े हैं मस्त भी साक़ी अयाग़ के नज़दीक

अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी

मिज़्गाँ ने रोका आँखों में दम इंतिज़ार से

अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी

बड़ा मुख़्लिस हूँ पाबंद-ए-वफ़ा हूँ

अब्दुल्लाह कमाल

नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

महफ़िल इश्क़ में जो यार उठे और बैठे

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

ख़फ़ा मत हो मुझ को ठिकाने बहुत हैं

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

बाग़ में जब कि वो दिल ख़ूँ-कुन-ए-हर-गुल पहुँचे

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

कैसे रखेंगे सर पे किसी का उधार हम

अब्दुल मतीन नियाज़

मैं पहुँचा अपनी मंज़िल तक मगर आहिस्ता आहिस्ता

अब्दुल मन्नान तरज़ी

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